केंद्र सरकार जल्द ही राष्ट्रीय सहकारिता नीति की घोषणा करने जा रही है, जो 2025 से 2045 तक प्रभावी रहेगी — यानी आजादी के शताब्दी वर्ष से ठीक पहले तक। इस नीति का उद्देश्य सहकारिता को ग्राम स्तर तक मजबूत बनाकर, भारत को एक आदर्श सहकारी राष्ट्र के रूप में स्थापित करना है।
राज्यों को मिलेगी लचीलापन
केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने सोमवार को देशभर के सहकारिता मंत्रियों के साथ बैठक में कहा कि:
“राष्ट्रीय सहकारिता नीति राज्यों को अपनी आवश्यकताओं के अनुसार स्थानीय सहकारिता नीति बनाने और लक्ष्य तय करने की अनुमति देगी।”
नीति के उद्देश्य और प्राथमिकताएं:
• हर गांव में कम से कम एक सहकारी संस्था सुनिश्चित करना।
• राष्ट्रीय सहकारी डाटाबेस के जरिए यह पहचानना कि किस गांव में सहकारी संस्था नहीं है।
• छोटे किसानों और ग्रामीणों को आर्थिक ताकत देने के लिए सामूहिक पूंजी का उपयोग।
• रोजगार सृजन और आर्थिक भागीदारी के लिए सहकारिता को मुख्य माध्यम बनाना।
अमित शाह ने क्या कहा:
• मोदी सरकार ने सहकारिता मंत्रालय को पुनर्जीवित करने और नया दृष्टिकोण देने के लिए स्थापित किया।
• सहकारिता का उद्देश्य सिर्फ संस्था निर्माण नहीं, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और समावेशी विकास भी है।
• मोदी सरकार के कार्यकाल में करोड़ों लोगों को घर, शौचालय, जल, गैस, स्वास्थ्य सुविधाएं दी गईं — अब उन्हें आर्थिक आत्मनिर्भरता की ओर ले जाने का कार्य सहकारिता से होगा।
क्या है राष्ट्रीय सहकारी डाटाबेस?
• यह डाटाबेस राष्ट्रीय, राज्य, जिला और तहसील स्तर की सहकारी संस्थाओं की पूरी जानकारी रखेगा।
• इसका मकसद है यह जानना कि कहां-कहां सहकारिता संस्थाएं हैं और कहां कमी है।
• इससे नीति निर्माण और फंडिंग, ट्रेनिंग, योजनाएं लक्ष्य आधारित बनेंगी।
यह नीति सहकारिता क्षेत्र को संगठित, सशक्त और समावेशी बनाने की दिशा में बड़ा कदम है। राज्यों को इसकी संरचना में लचीलापन देकर केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करना चाहती है कि सहकारिता सिर्फ नीतिगत घोषणा न रहकर जमीनी स्तर पर क्रियान्वयन और परिवर्तन का माध्यम बने।
यह पहल ग्रामीण भारत के आर्थिक भविष्य को सशक्त, साझेदारी-आधारित और सतत बनाने की दिशा में निर्णायक साबित हो सकती है।