देहरादून। प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध उत्तराखंड ने अब जलविद्युत के साथ-साथ सौर ऊर्जा उत्पादन के क्षेत्र में भी अपनी मजबूत पहचान बना ली है। राज्य गठन के 25 वर्ष पूरे होने पर जारी आंकड़ों के अनुसार, इस अवधि में जलविद्युत उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, वहीं नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में भी प्रदेश ने उल्लेखनीय प्रगति दर्ज की है।
ऊर्जा विभाग के अनुसार, वर्ष 2000 में राज्य गठन के समय जहां जलविद्युत उत्पादन की कुल क्षमता लगभग 1,200 मेगावॉट थी, वहीं अब यह बढ़कर 3,800 मेगावॉट से अधिक हो चुकी है। प्रदेश की पहाड़ी नदियों—अलकनंदा, भागीरथी, टौंस और काली—पर बने बड़े और छोटे जलविद्युत परियोजनाओं ने इस वृद्धि में अहम भूमिका निभाई है।
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि उत्तराखंड देश की ऊर्जा आत्मनिर्भरता में निरंतर योगदान दे रहा है। राज्य सरकार का लक्ष्य आने वाले वर्षों में जलविद्युत के साथ सौर और पवन ऊर्जा को भी समान रूप से विकसित करना है। उन्होंने कहा कि पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को ध्यान में रखते हुए राज्य में ‘ग्रीन एनर्जी उत्तराखंड’ अभियान को गति दी जा रही है।
पिछले कुछ वर्षों में उत्तराखंड ने सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी बड़ी छलांग लगाई है। अब तक 300 मेगावॉट से अधिक सौर ऊर्जा उत्पादन क्षमता स्थापित की जा चुकी है। प्रदेश के कई जिलों—देहरादून, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, पौड़ी और हरिद्वार—में सोलर पावर प्रोजेक्ट्स संचालित हैं। इसके अलावा ग्रामीण क्षेत्रों में भी सोलर रूफटॉप और मिनी ग्रिड योजनाओं से हजारों घरों में बिजली पहुंचाई जा रही है।
ऊर्जा विभाग के अधिकारियों के अनुसार, सरकार का लक्ष्य वर्ष 2030 तक राज्य में कुल स्थापित क्षमता को 5,000 मेगावॉट से अधिक तक पहुंचाने का है, जिसमें सौर ऊर्जा की हिस्सेदारी भी तेजी से बढ़ाई जाएगी।
विशेषज्ञों का कहना है कि हिमालयी राज्य होने के कारण उत्तराखंड में स्वच्छ ऊर्जा उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। जल, सूर्य और हवा—तीनों प्राकृतिक संसाधनों का संतुलित उपयोग राज्य को हरित ऊर्जा की दिशा में अग्रणी बना सकता है।
इस प्रकार, जलविद्युत के पारंपरिक क्षेत्र से आगे बढ़ते हुए उत्तराखंड ने अब सौर ऊर्जा के क्षेत्र में भी अपनी एक सशक्त और स्थायी पहचान कायम कर ली है।


