तीसरी बार मोदी सरकार, अबकी बार चार सौ पार…लोकसभा चुनाव में जीत की हैट्रिक के प्रति मजबूत अवधारणा बनाने की रणनीति के तहत भाजपा के गढ़े ये नारे पार्टी की दूरगामी रणनीति की ओर इशारा करते हैं। इन नारों से भाजपा के रणनीतिकारों ने चुनावी बहस को एनडीए की हार-जीत से परे, गठबंधन को तीसरी और बीते दो चुनाव से बड़ी जीत हासिल करने का माहौल बनाने की दिशा में कदम बढ़ाकर विपक्ष पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बना ली है। बीते दो मुकाबलों की तरह इस बार भी एक तरफ अब तक अजेय ब्रांड मोदी है, तो दूसरी ओर एकसाथ आने की कोशिश में लगातार बिखरता विपक्ष है। हिंदुत्व व राष्ट्रवाद की जमीन और मजबूत होने के बीच भाजपा वोट प्रतिशत और सीटें बढ़ाने के लिए एक-एक कर पुराने सहयोगियों को साध रही है। ब्रांड मोदी की चुनौती विपक्ष के लिए नई नहीं है। गुजरात के सीएम से लेकर प्रधानमंत्री तक, ब्रांड मोदी विपक्ष के लिए अभेद्य किला रहा है। सीएम पद की शपथ लेने के बाद गुजरात में 2012 तक तो 2014 से केंद्र में कांग्रेस को लगातार मुंह की खानी पड़ी है। इसी ब्रांड के सहारे भाजपा नया वोट बैंक स्थापित करने में सफल रही है। वर्ष 2009 में जब भाजपा लोकसभा चुनाव हारी, तब उसे महज 7.84 करोड़ वोट मिले थे। हालांकि मोदी-शाह युग की शुरुआत के बाद बीते दो चुनावों में उसके मत में 15 करोड़ से अधिक की बढ़ोतरी हुई है। 2019 के चुनाव में तो उसे 224 सीटों पर 50 फीसदी से अधिक वोट मिले।
विपक्ष की आरक्षण, जाति गणना की पुरानी लीक वाली सामाजिक न्याय की राजनीति के समानांतर प्रधानमंत्री मोदी ने नई सामाजिक न्याय की अवधारणा पेश करते हुए गरीब, युवा, महिला और किसान को चार जातियां बताया है। वहीं, बीते दो मुकाबलों में ब्रांड मोदी से पार पाने में अक्षम विपक्ष पहले की तरह ही महंगाई, बेरोजगारी जैसे पुराने मुद्दे उठा रहा है। हां, नया यह है कि आजादी के बाद पहली बार कांग्रेस ने सामाजिक न्याय की राजनीति को मुखरता के साथ अपनाया है। राहुल गांधी अपने हर कार्यक्रम और जनसभाओं में सत्ता में आने पर जाति जनगणना कराने और आरक्षण का दायरा बढ़ाने का वादा कर रहे हैं।