बांग्लादेश के संस्थापक शेख मुजीबुर रहमान की बेटी और लौह महिला कही जाने वाली शेख हसीना का 15 साल का शासन खत्म हो गया। लगातार चार बार प्रधानमंत्री रहीं हसीना का यह पांचवां कार्यकाल था। बिगड़े हालातों के बीच हसीना को सेना ने देश छोड़ने के लिए 45 मिनट का समय दिया था। इस तरह हसीना के शासन का अंत हो गया। शेख हसीना के विरोधियों ने एक निरंकुश नेता के तौर पर उनकी आलोचना भी खूब की लेकिन इन सबके बावजूद वह दुनिया में सबसे लंबे समय तक सत्ता में रहने वाली महिला प्रमुखों में से एक रहीं। शेख हसीना पहली बार 1996 में प्रधानमंत्री बनीं और 2009 से लगातार देश का नेतृत्व कर रही हैं। इस साल जनवरी में लगातार चौथी बार चुनी गईं। सितंबर 1947 में पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में पैदा हुईं हसीना 1960 के दशक में ढाका विश्वविद्यालय में पढ़ते वक्त ही राजनीति में सक्रिय हो गई थीं।
पाकिस्तान सरकार में जब पिता जेल में थे
हसीना ने बाहर उनके राजनीतिक संपर्क सूत्र के तौर पर काम किया। 1971 में बांग्लादेश को पाकिस्तान से आजादी मिलने के बाद, उनके पिता मुजीबुर रहमान देश के राष्ट्रपति और फिर प्रधानमंत्री बने।
पिता, मां और तीन भाइयों की हत्या
अगस्त 1975 में, रहमान, उनकी पत्नी और उनके तीन बेटों की सैन्य अधिकारियों ने घर में घुसकर हत्या कर दी। हसीना अपनी छोटी बहन शेख रिहाना के साथ विदेश में होने के कारण बच गईं।
भारत में छह साल निर्वासन में बिताने वाली हसीना को उनके पिता की बनाई पार्टी अवामी लीग का नेता चुना गया। 1981 में, हसीना स्वदेश लौटीं और सैन्य शासित देश में लोकतंत्र को लेकर मुखर हो गईं। कई मौकों पर उन्हें नजरबंद भी रखा गया।
1991 में पहला चुनाव लड़ा, 1996 में पहली बार पीएम बनीं
1991 के आम चुनावों में शेख हसीना के नेतृत्व वाली आवामी लीग बहुमत हासिल करने में विफल रही। उनकी प्रतिद्वंद्वी बांग्लादेश नेशनल पार्टी (बीएनपी) की खालिदा जिया प्रधानमंत्री बनीं। पांच साल बाद, 1996 के आम चुनावों में हसीना प्रधानमंत्री चुनी गईं। हालांकि 2001 के चुनावों में हसीना को सत्ता से बाहर कर दिया गया, लेकिन 2008 के चुनावों में भारी जीत के साथ 2009 में प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। इससे पहले 2004 में उनकी रैली में एक ग्रेनेड विस्फोट कर उनकी हत्या की भी कोशिश की गई थी।





