Thursday, March 20, 2025

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ग्लेशियरों के पिघलने से हिमनद झीलों के क्षेत्र में इजाफा

वैश्विक तापमान में हो रही लगातार वृद्धि के कारण ग्लेशियरों के पिघलने से न सिर्फ हिमनद झीलों का दायरा बढ़ रहा है, बल्कि नई झीलें भी अस्तित्व में आ रहीं हैं। इसके साथ ही ये झीलें अस्थिर भी हो रहीं हैं, जिसके कारण पहाड़ी इलाकों में बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है।पॉट्सडैम विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के अध्ययन के अनुसार, पहाड़ी क्षेत्रों में छोटी हिमनद झीलें बाढ़ के प्रति कहीं अधिक संवेदनशील हैं। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल नेचर वाटर में प्रकाशित हुए हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, हिमालय सहित दुनियाभर के ग्लेशियरों में जमा बर्फ पहले के मुकाबले 30 फीसदी ज्यादा तेजी से पिघल रही है। इन ग्लेशियरों से पिघला कुछ पानी हिमनद झीलों में जमा हो जाता है। ऐसे में अगर झीलों के किनारे या बांध टूटते हैं तो इसकी वजह से आने वाली बाढ़ निचले इलाकों के लिए विनाशकारी साबित हो सकती है। बाढ़ का यह खतरा केवल झीलों की संख्या और आकार से नहीं, बल्कि उनकी संरचना पर भी निर्भर करता है।वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमालय क्षेत्र में लगभग 5 हजार हिमनद झीलें बाढ़ के खतरे में हैं, क्योंकि उनके किनारे अस्थिर हैं। जिन झीलों में अधिक मात्रा में पानी है उनसे खतरा भी उतना ही अधिक है। अक्टूबर 2023 में भारत में एक हिमनद झील फटने से आई बाढ़ में 55 लोगों की मौत हो गई थी और तीस्ता जलविद्युत परियोजना को गंभीर नुकसान पहुंचा था। इसी तरह 2013 में केदारनाथ बाढ़ में हजारों लोगों की जान चली गई थी। अध्ययन में यह भी चेतावनी दी गई है कि भविष्य में पूर्वी हिमालय की हिमनद झीलों के कारण बाढ़ का खतरा तीन गुना तक बढ़ सकता है।

1990 से 2023 के बीच वैज्ञानिकों ने 13 पहाड़ी क्षेत्रों में 1,686 हिमनद झीलों का अध्ययन किया। इस दौरान उपग्रह से प्राप्त चित्रों का विश्लेषण किया गया, जिससे पता चला कि बर्फ से बनी झीलें सिकुड़ रही हैं, जबकि ग्लेशियरों की ओर से लाए गए मलबे यानी मोरेन से बनी झीलें अपेक्षाकृत स्थिर बनी हुई हैं।

शोधकर्ताओं का मानना है कि हिमालय क्षेत्र जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति अत्यधिक संवेदनशील है। हजारों हिमनद झीलें बाढ़ के खतरे में हैं और इनका प्रभाव घाटी में बहने वाली नदियों तक पड़ सकता है। 2003 से 2010 के बीच सिक्किम हिमालय में 85 नई झीलें बनीं। इन झीलों के किनारे प्राकृतिक तत्वों से बने होते हैं, जिन्हें हिमोढ़ या मोरेन कहा जाता है। यानी यह किनारे ढीली चट्टानों ओर बर्फ से बने होते हैं। ग्लोबल वार्मिंग के कारण जैसे-जैसे यह बर्फ पिघलती है, धीरे-धीरे किनारे की चट्टानें पानी के लिए रास्ता छोड़ देती हैं।

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