भारतीय कृषि को एक नए और चुपके से उभरते खतरे का सामना करना पड़ रहा है और यह है सतह के समीप बढ़ता हुआ ओजोन स्तर। आईआईटी खड़गपुर के वैज्ञानिकों के एक अध्ययन में यह चेतावनी दी गई है कि ओजोन प्रदूषण गेहूं, मक्का और धान जैसी प्रमुख खाद्यान्न फसलों के उत्पादन पर नकारात्मक असर डाल सकता है। शोधकर्ताओं के मुताबिक, सतही ओजोन एक शक्तिशाली ऑक्सीडाइजिंग एजेंट है जो पौधों की पत्तियों और ऊतकों को क्षति पहुंचाता है, जिससे उनकी वृद्धि बाधित होती है और फसल की उपज घट जाती है। हालांकि, ऊपरी वायुमंडल में ओजोन परत हमारी रक्षा करती है, लेकिन जमीन के पास मौजूद ओजोन स्वास्थ्य के साथ-साथ वनस्पति और जैवविविधता के लिए खतरनाक साबित हो रही है। इसका निर्माण मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न प्रदूषकों के सूर्य की रोशनी के संपर्क में आने से होता है। आईआईटी खड़गपुर की टीम ने जलवायु मॉडल के आंकड़ों और ऐतिहासिक डाटा की मदद से यह अनुमान लगाने की कोशिश की है कि अगर ओजोन का स्तर इसी तरह बढ़ता रहा, तो भविष्य में इसका कृषि पर क्या असर पड़ेगा। अध्ययन के निष्कर्ष बताते हैं कि यदि उत्सर्जन पर नियंत्रण के लिए प्रभावी कदम नहीं उठाए गए तो गेहूं की पैदावार में 20 फीसदी तक की अतिरिक्त गिरावट हो सकती है, जबकि धान और मक्का की उपज में भी लगभग 7 फीसदी की कमी आने की संभावना है। यह शोध प्रोफेसर जयनारायणन कुट्टिपुरथ के नेतृत्व में किया गया और इसे एनवायर्नमेंटल रिसर्च नामक जर्नल में प्रकाशित किया गया है। शोध से यह भी सामने आया है कि गंगा के मैदानी क्षेत्र और मध्य भारत में फसलों पर सबसे ज्यादा असर पड़ सकता है, क्योंकि इन इलाकों में सतही ओजोन का स्तर सुरक्षित सीमा से छह गुना ज्यादा हो सकता है। ओजोन प्रदूषण से फसलों की पैदावार घटेगी तो उसकी वजह से किसानों की आमदनी घटेगी और खाद्यान उत्पादन में भी गिरावट आएगी जो भोजन की कमी को बढ़ा सकती है। यह सिर्फ भारत ही नहीं, बल्कि वैश्विक खाद्य आपूर्ति के लिए भी एक बड़ा खतरा बन सकता है, क्योंकि भारत कई देशों को अनाज निर्यात करता है।