देश के अलग-अलग हिस्सों में मंदिर-मस्जिद विवाद के बढ़ते मामले के संदर्भ में संघ प्रमुख मोहन भागवत की टिप्पणी से सियासी हलचल तेज हो गई है। भागवत की टिप्पणी के बाद सबकी निगाहें उपासना स्थल अधिनियम-1991 पर केंद्र सरकार के भावी रुख पर है। शीर्ष अदालत इस अधिनियम को चुनौती देने वाली अर्जियों पर विचार कर रहा है और केंद्र को उसके समक्ष अपनी स्थिति स्पष्ट करनी है। भागवत की टिप्पणी के बाद राजस्थान की स्थानीय अदालत में केंद्र सरकार के अधीनस्थ दरगाह कमेटी ने दो दिन पहले अजमेर दरगाह बनाम संकट मोचन महादेव मंदिर विवाद में वाद खारिज करने का अनुरोध किया है। हालांकि दरगाह कमेटी, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) और अल्पसंख्यक मंत्रालय ने इस विवाद में खुद को वादी बनाने की मांग भी की है। बड़ा सवाल है कि क्या केंद्र सरकार उपासना स्थल अधिनियम मामले में भी अजमेर दरगाह कमेटी जैसा ही रुख अपनाएगी? अजमेर और संभल में शाही मस्जिद पर दावे के बीच पुणे में संघ प्रमुख ने कहा था कि कुछ लोग सोचते हैं कि इस तरह के मंदिर-मस्जिद के विवाद को उठाकर वे हिंदुओं का नेता बन जाएंगे। भारत समावेशी संस्कृति के कारण एक राष्ट्र बना। ऐसे में एकता का अर्थ विविधता को खत्म कर एकरुपता कायम करना नहीं है। भागवत ने दो वर्ष पूर्व संघ पदाधिकारियों के प्रशिक्षिण शिविर में कहा था कि हमें हर मस्जिद के पीछे शिवलिंग ढूंढ़ने की जरूरत नहीं है। इसके बाद छत्तीसगढ़ में एक कार्यक्रम में कहा कि देश के हिंदुओं और मुसलमानों का डीएनए एक है। इस मामले में सरकार के लिए रुख तय करना इतना आसान नहीं है। इस संदर्भ में संघ का एक रुख है, जबकि दूसरी ओर मस्जिदों, मजारों पर दावे वाले दर्जनों मामले अदालत के विचाराधीन हैं। सरकार अगर इस अधिनियम का विरोध करती है, तो इसे संघ प्रमुख की टिप्पणी के आलोक में संघ की दृष्टि से इतर माना जाएगा। अगर सरकार अधिनियम का समर्थन करती है, तब सवाल उठेगा कि काशी और मथुरा जैसे विवाद का क्या होगा? संघ के वरिष्ठ पदाधिकारी के मुताबिक, हमारा लक्ष्य सांस्कृतिक राष्ट्रवाद है। राम, कृष्ण और शिव हमारी सांस्कृतिक पहचान है। अयोध्या में मंदिर बना। काशी और मथुरा का मामला अदालत में विचाराधीन है। सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के लक्ष्य को हासिल करने के लिए इससे आगे जाने की जरूरत नहीं है। अभी जिस तरह से हर इलाके में मंदिर-मस्जिद विवाद को आंच दी जा रही है, यह उचित नहीं है। इससे कानून-व्यवस्था का सवाल खड़ा होगा और नए-नए विवाद जन्म लेंगे।
• संघ सूत्रों का कहना है कि हमारी लड़ाई इस तथ्य को स्थापित करने की है कि इस देश के सांस्कृतिक प्रतिनिधि मुगल, अंग्रेज या कोई और हमलावर नहीं, भगवान राम, कृष्ण व शिव हैं। आजादी के बाद सोमनाथ मंदिर का पुनर्निमाण इसी पहचान की दिशा में बढ़ाया गया पहला कदम था। अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण दूसरी कड़ी थी। काशी और मथुरा विवाद के हल होते ही सांस्कृतिक पहचान की हमारी लड़ाई खत्म हो जाएगी। इससे आगे जाने पर अतार्किक और गैरजरूरी विवाद पैदा होंगे।