कृषि वैज्ञानिक और आईसीएआर- कृषि प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग अनुसंधान संस्थान (जोन-V) कोलकाता के निदेशक डॉ. प्रदीप डे ने कहा कि किसानों को अपनी परंपरागत फसलों का पंजीकरण जरूर कराना चाहिए। इसके लिए कराना होता है डस (डीयूएस) परीक्षण कराना होता है। इससे जहां परंपरागत धरोहर संरक्षित होगी, वहीं भविष्य में किसानों को फायदा भी होगा। यह बात उन्होंने गुरुवार को नरेंद्रपुर स्थित शस्य सस्या श्यामला कृषि विज्ञान केंद्र में आयोजित एक दिवसीय पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकारों के संरक्षण अधिनियम 2001 विषय पर आयोजित कार्यशाला में कही। इसका आरकेएमवीईआरआई, आईसीएआर-कृषि प्रौद्योगिकी आवेदन अनुसंधान संस्थान (एटीएआरई), कोलकाता और रामकृष्ण मिशन कृषि विज्ञान केंद्र, निमपिथ पश्चिम बंगाल के सहयोग से किया गया था। इस मौके पर कृषि जैव विविधता प्रदर्शनी का भी आयोजन किया गया। डॉ. प्रदीप ने कहा, पारंपरिक फसलों की किस्मों के संरक्षण को एक महत्वपूर्ण कृषि धरोहर बताया। उन्होंने किसानों से अपील की कि वे अपनी पारंपरिक फसलों को पंजीकरण कराएं, ताकि वे पीपीवीएफआर अधिनियम, 2001 द्वारा प्रदान किए गए अधिकारों और लाभों का लाभ उठा सकें। डॉ. डे ने जोन-V के कृषि विज्ञान केंद्रों के योगदान को भी प्रमुख रूप से उजागर किया, जो पौधों की किस्मों के संरक्षण में शामिल हैं। उन्होंने आईसीएआर-अटारी की कृषि विज्ञान केंद्र के साथ साझेदारी में उनके संरक्षण, पंजीकरण और मूल्य श्रृंखला एकीकरण में सहयोग का आश्वासन दिया। इससे पहले स्वामी शिवपूर्णानंदजी महाराज, आईआरडीएम के सहायक प्रशासनिक प्रमुख और उपाध्यक्ष एसएसकेवीके, आरकेएमवीईआरआई ने कृषि जैव विविधता और पारंपरिक किस्मों के महत्व पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा, समया आ गया है कि किसानों को कृषि के साथ-साथ उन फसलों को पर भी ध्यान देना चाहिए, जो आर्थिक लाभ पहुंचाए। उन्होंने कार्यशाला में आए हुए किसानों को इस तरह के कार्यक्रमों से अधिक से अधिक लाभ उठाने का अनुरोध किया। उ्न्होंने कहा, जो भी किसान इस कार्यशाला में शामिल हुए हैं, वे गांवों में जाकर अन्य किसानों को जागरूक करें। इस मौके पर प्रो. तापस दासगुप्ता, डीन, आईआरडीएम, आरकेएमवीईआईआई ने पौधों की किस्मों और किसानों के अधिकारों के संरक्षण अधिनियम पर महत्वपूर्ण जानकारी किसानों से साझा किए।
उन्होंने किसानों की पहचान और पारंपरिक जैव विविधता के संरक्षकों के सशक्तिकरण के रास्ते बताए गए। इस मौके पर एसएसकेवीके के इंचार्ज प्रमुख डॉ. एस. घोष ने किसानों को फसल संग्रह और दस्तावेजीकरण की जानकारी दी और कार्यक्रम का समन्वय किया। इस मौके पर विभिन्न विषयों पर व्याख्यानों के अलावा, सस्या श्यामला कृषि विज्ञान केंद्र, रामकृष्ण आश्रम कृषि विज्ञान केंद्र, आईआरडीएम फैकल्टी सेंटर, वासन, और सागर कृष्णानगर स्वामी विवेकानंद युवा सांस्कृतिक समाज द्वारा प्रदर्शनी स्टॉल लगाए गए।
इनमें किसानों के लिए विविध फसल किस्मों, भूमि और स्वदेशी प्रौद्योगिकियों को प्रदर्शित किया गया। इंटरएक्टिव सत्र के दौरान, किसानों ने पारंपरिक किस्मों के संरक्षण में आने वाली चुनौतियों को साझा किया और इन-सीटू संरक्षण प्रयासों को बनाए रखने के लिए वित्तीय समर्थन की आवश्यकता पर जोर दिया। यह कार्यशाला स्वदेशी पौधों की किस्मों की रक्षा के महत्व को उजागर करने के साथ-साथ प्रमुख संस्थानों द्वारा विकसित सुगंधित, जैव-समृद्ध और क्षेत्रीय रूप से अनुकूलित फसल किस्मों की समृद्ध विविधता को प्रदर्शित करने के लिए एक जीवंत मंच साबित हुई। कुल 140 प्रतिभागियों ने इस कार्यशाला में भाग लिया, जिनमें किसान, वैज्ञानिक, पोस्ट-ग्रेजुएट छात्र, प्रदर्शक, केवीके के प्रमुख और कर्मचारी शामिल थे।