जलवायु परिवर्तन, जंगलों में लगती आग और वायु प्रदूषण का दुष्चक्र न सिर्फ इन्सानी सेहत को, बल्कि कृषि और पारिस्थितिकी तंत्र को भी गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है। यह जानकारी विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने नई रिपोर्ट में दी है। डब्ल्यूएमओ की ओर से जारी ताजा वायु गुणवत्ता और जलवायु बुलेटिन में दुनियाभर के जंगलों में लगती आग की घटनाओं के साथ वायु प्रदूषण के फसलों पर पड़ रहे हानिकारक प्रभावों पर विशेष रूप से ध्यान दिया है। यह बुलेटिन विशेष रूप से सात सितंबर को मनाए जाने वाले इंटरनेशनल डे ऑफ क्लीन एयर फॉर ब्लू स्काइज के मौके पर जारी की गई है। बुलेटिन के अनुसार, खुली हवा में घुला जहर हर साल दुनियाभर में 45 लाख से अधिक जिंदगियों को असमय निगल रहा है। इतना ही नहीं यह कृषि अर्थव्यवस्था और पर्यावरण पर भी गहरी चोट पहुंचा रहा है। प्रदूषण के ये कण उन क्षेत्रों में फसलों की पैदावार को कम कर रहे हैं जहां उपज लोगों का पेट भरने के लिए बेहद मायने रखती है। यह समस्या भारत, पाकिस्तान, चीन, मध्य अफ्रीका, और दक्षिण पूर्व एशिया में कहीं ज्यादा गंभीर है, जो इसके प्रमुख हॉटस्पॉट हैं। भारत और चीन में किए परीक्षणों से पता चला है कि बेहद प्रदूषित क्षेत्रों में प्रदूषण के ये महीन कण फसलों की पैदावार को 15 फीसदी तक कम कर रहे हैं। ये पत्तियों तक पहुंचने वाली सूर्य की रोशनी को रोक देते हैं साथ पत्तियों पर मौजूद छोटे-छोटे छिद्रों को अवरुद्ध कर देते हैं। ये छिद्र पौधों को कार्बन डाइऑक्साइड लेने और जल वाष्प छोड़ने में मदद करते हैं। दूसरी तरफ कृषि भी कई तरह से प्रदूषण के इन महीन कणों में योगदान देती है। फसल अवशेषों को जलाने, उर्वरकों और कीटनाशकों के उपयोग, मिट्टी की जुताई, कटाई और भंडारण और खाद के उपयोग जैसी गतिविधियों से यह कण व उनके अग्रदूत पैदा होते हैं।