तेजी से बढ़ने वाली फसलों को लगाना, उत्सर्जित कार्बन डाइऑक्साइड (सीओ2) को कैप्चर कर संग्रहित करना और वातावरण से ग्रीनहाउस गैसों को हटाना जलवायु परिवर्तन को सीमित करने के महत्वपूर्ण उपाय माने जाते हैं। लेकिन एक नए शोध के अनुसार यदि यह प्रक्रिया मौजूदा कृषि भूमि से अलग क्षेत्रों में की जाती है तो इससे पारिस्थितिकी तंत्र को खतरा हो सकता है।पॉट्सडैम इंस्टीट्यूट फॉर क्लाइमेट इम्पैक्ट रिसर्च (पीआईके) द्वारा किए गए एक अध्ययन में जलवायु वृक्षारोपण और बायोएनर्जी के साथ कार्बन कैप्चर और स्टोरेज (बीईसीसीएस) की संभावनाओं का विश्लेषण किया गया है। इसमें पाया गया कि 2050 तक कृषि भूमि से केवल 20 करोड़ टन सीओ2 हटाई जा सकेगी, जो कई जलवायु परिदृश्यों में अपेक्षित स्तर से बहुत कम है। यदि हम अन्य तकनीकों जैसे हवा से सीधे सीओ2 हटाने की प्रणाली पर ध्यान नहीं देते हैं तो हमें मौजूदा कृषि भूमि का उपयोग करना होगा। यह तभी संभव होगा जब खाद्य प्रणाली में बदलाव किए जाएं और मांस व अन्य पशु उत्पादों की खपत घटाई जाए।