एक देश, एक चुनाव पर उत्तराखंड के हितधारकों से सुझाव लेने वाली संयुक्त संसदीय समिति ने अब सभी राज्यों से छह माह में विभागवार रिपोर्ट मांगी है। समिति के अध्यक्ष पीपी चौधरी ने कहा कि अलग-अलग चुनाव से होने वाले खर्च, नुकसान पर यह रिपोर्ट राज्यों के मुख्य सचिव देंगे। उन्होंने कहा कि एक साथ चुनाव होने की सूरत में देश के पांच लाख करोड़ रुपये की बचत होगी जो कि जीडीपी का 1.6 प्रतिशत है।
21 मई को संसदीय समिति का 41 सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल देहरादून पहुंचा था। इसमें 39 सांसद और दो मनोनीत सदस्य हैं। दो दिन तक लगातार समिति ने एक देश, एक चुनाव पर फीडबैक लिया। बृहस्पतिवार को मीडिया से बातचीत में समिति अध्यक्ष पीपी चौधरी ने दो दिन के अनुभव साझा किए। उन्होंने बताया कि समिति ने अभी तक महाराष्ट्र और उत्तराखंड से फीडबैक लिया है। वर्ष 1967 तक लोकसभा व विधानसभाओं के चुनाव एक साथ होते थे।
वर्ष 1984 से एक साथ चुनाव के लिए कोशिशें तेज हुईं, लेकिन यह परवान नहीं चढ़ पाईं। उन्होंने कहा कि पहली बार देश में इतने बड़े स्तर पर चुनाव संशोधन का बिल लाया गया है, जिस पर सुझाव लिए जा रहे हैं। उन्होंने बताया कि सभी राज्यों से कहा गया है कि एक साथ चुनाव के प्रत्यक्ष व परोक्ष लाभ-हानि पर विस्तृत अध्ययन कर रिपोर्ट प्रेषित करें, जिससे समिति अपनी रिपोर्ट और बेहतर बना सकेगी। एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि समिति की कोई समय सीमा तय नहीं है। जल्दबाजी के बजाए देशभर से सुझाव लेने के बाद वे अपनी रिपोर्ट जमा करेंगे।
समिति अध्यक्ष पीपी चौधरी का कहना है कि आज भी कई चुनाव एक साथ होते हैं, तो क्या यह गलत है। उन्होंने कहा कि चुनाव के दौरान चार करोड़ 85 लाख श्रमिक देश में इधर से उधर आते-जाते हैं। इससे उद्योगों पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने एक सवाल के जवाब में कहा कि मौसम भी चुनाव को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक है। उन्होंने अप्रैल-मई में एक साथ चुनाव कराने पर जोर दिया।
अध्यक्ष चौधरी का कहना है कि एक देश, एक चुनाव की पांच साल की समयसीमा तय हो जाएगी। अगर इस बीच केंद्र या राज्य की सरकार गिरती है तो राष्ट्रपति शासन लगता है या दोबारा चुनाव होता है तो बचे हुए समय के लिए ही नई सरकार होगी। निर्धारित पांच साल बाद दोबारा एक साथ चुनाव होंगे। कांग्रेस के विरोध के सवाल पर उन्होंने कहा कि जब हम उन्हें पूरे लाभ बताएंगे तो हो सकता है कि वे भी इसके पक्ष में आ जाएं। उन्होंने ये भी कहा कि अविश्वास प्रस्ताव को लेकर जापान या जर्मन जैसा मॉडल भी अपनाया जा सकता है, जिसमें हाउस के भीतर फ्लोर पर ही नया सीएम या पीएम चुनने के प्रावधान होते हैं।
एक देश, एक चुनाव: समिति ने उत्तराखंड का भी लिया फीडबैक
