भारत की सरकार का फोकस एक्ट ईस्ट नीति है और इस नीति के तहत भारत की सरकार चुपचाप दक्षिणपूर्वी एशियाई देशों के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है। इस नीति के साथ ही कोरियाई प्रायद्वीप में भी भारत की नजर है। दक्षिण कोरिया के साथ भारत के संबंध अच्छे रहे हैं, लेकिन उत्तर कोरिया के साथ भारत के संबंध थोड़े ढके-छिपे ही रहे हैं। बीते कई वर्षों से उत्तर कोरिया में भारत का दूतावास भी बंद पड़ा था, लेकिन अब ऐसा लगता है कि भारत की कूटनीति में बड़ा बदलाव आया है और भारत ने प्योंगयांग के साथ अपने रिश्तों को मजबूती देने की कोशिश शुरू कर दी है। जुलाई 2021 में भारत ने उत्तर कोरिया की राजधानी प्योंगयांग में अपना दूतावास बंद कर दिया था और अपने राजदूत समेत पूरे स्टाफ को वापस दिल्ली बुला लिया था। इसकी वजह भारत ने कोरोना महामारी को बताया था। हालांकि कोरोना महामारी के बाद भी प्योंगयांग में भारत ने अपना राजदूत नहीं भेजा। अब अचानक इस महीने की शुरुआत में भारत ने उत्तर कोरिया में अपने दूतावास का कामकाज फिर से शुरू करने का फैसला किया है। फिलहाल एक तकनीकी और राजनयिक कर्मचारियों की एक टीम को उत्तर कोरिया भेजा गया है। भारतीय दूतावास करीब साढ़े तीन साल से बंद है। उत्तर कोरिया की सरकार जासूसी के लिए बदनाम भी है, ऐसे में पहले तकनीकी टीम दूतावास की जांच कर रही है। हालांकि अभी किसी राजदूत की नियुक्ति में थोड़ा समय लग सकता है। उत्तर कोरिया का प्रभाव हाल के वर्षों में काफी बढ़ा है। इसकी वजह है उत्तर कोरिया का परमाणु शक्ति संपन्न होना और साथ ही उत्तर कोरिया ने हाइपरसोनिक मिसाइलों और लंबी दूरी की मिसाइलों का सफल परीक्षण किया है। ऐसे में सामरिक तौर पर उत्तर कोरिया की अहमियत चार वर्ष पहले की तुलना में काफी बढ़ गई है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत सरकार को ये भी डर है कि उत्तर कोरिया की मिसाइल तकनीक पाकिस्तान या पाकिस्तान के आतंकी संगठनों के हाथ न लगने पाए, इसलिए भी भारत सरकार उत्तर कोरिया के साथ अपने रिश्तों को सुधारना चाहती है।