नैनीताल।
रक्षाकर्मियों और उनके आश्रितों को न्याय पाने में होने वाली देरी अब इतिहास बनने जा रही है। उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने ऐसे सभी मामलों के त्वरित निपटारे के लिए नई गाइडलाइन जारी की है। मुख्य न्यायाधीश जी. नरेन्दर के अनुमोदन से जारी इन दिशा-निर्देशों के तहत राज्य की सभी अधीनस्थ अदालतों को आदेश दिया गया है कि वे सैन्यकर्मियों से संबंधित वादों की पहचान कर उन्हें प्राथमिकता के आधार पर निपटाएं।
🔹 सभी अदालतों में लागू होंगे निर्देश
हाईकोर्ट की अधिसूचना के अनुसार, ये गाइडलाइन तत्काल प्रभाव से लागू होंगी। सभी जिला और तहसील स्तर की अदालतों को पहले चरण में ऐसे लंबित मामलों की पहचान करने के निर्देश दिए गए हैं जो रक्षाकर्मियों या उनके परिजनों से संबंधित हैं। इन मामलों को विशेष रंग कोड या टैगिंग सिस्टम के माध्यम से चिह्नित किया जाएगा, ताकि उनकी प्राथमिकता से सुनवाई और शीघ्र निस्तारण सुनिश्चित किया जा सके।
🔹 न्यायिक अधिकारियों को मिलेगा विशेष प्रशिक्षण
हाईकोर्ट ने उत्तराखंड न्यायिक एवं विधिक अकादमी (उजाला), भवाली को भी निर्देश दिए हैं कि समय-समय पर न्यायिक अधिकारियों को इस विषय पर विशेष प्रशिक्षण दिया जाए। प्रशिक्षण में यह सुनिश्चित किया जाएगा कि अधिकारी सैन्यकर्मियों से जुड़े विशेष कानूनों और संवैधानिक प्रावधानों — जैसे भारतीय सैनिक (विधिक कार्यवाही) अधिनियम 1925, आर्मी एक्ट 1950, एयरफोर्स एक्ट 1950, और नेवी एक्ट 1950 — से भलीभांति परिचित हों।
🔹 हाईकोर्ट के निर्देशों के प्रमुख बिंदु
- कानूनी प्रावधानों का पालन:
अदालतें सुनवाई के दौरान सैन्यकर्मियों से जुड़े सभी मामलों में संबंधित कानूनों और अधिनियमों का कड़ाई से पालन करें। - अनावश्यक प्रतीक्षा न कराई जाए:
जब किसी मामले में रक्षाकर्मी की व्यक्तिगत उपस्थिति आवश्यक हो, तो उसे बिना वजह प्रतीक्षा न करनी पड़े। सुनवाई उनकी उपलब्धता के अनुसार तय की जाए। - सूचना अनिवार्य:
यदि किसी सैनिक या पूर्व सैनिक की गिरफ्तारी या संपत्ति पर रोक आवश्यक हो, तो पहले उनके कमांडिंग अधिकारी या जिला सैनिक बोर्ड को सूचित किया जाना अनिवार्य होगा। - मध्यस्थता को बढ़ावा:
जहां संभव हो, ऐसे मामलों को लोक अदालत या मध्यस्थता (मेडिएशन) के माध्यम से निपटाने का प्रयास किया जाए। - ट्रिब्यूनल में हस्तांतरण:
सेवा संबंधी विवादों में यदि कोई मामला विशेष ट्रिब्यूनल के अधिकार क्षेत्र में आता है, तो उसे तुरंत वहां भेजा जाए ताकि लंबित मामलों का बोझ कम हो।
🔹 इन वर्गों को मिलेगा लाभ
हाईकोर्ट की यह पहल न केवल थल सेना, वायु सेना और नौसेना के वर्तमान या सेवानिवृत्त रक्षाकर्मियों को, बल्कि असम राइफल्स, बीएसएफ, सीआरपीएफ, एसएसबी, सीआईएसएफ और केंद्र सरकार के अन्य केंद्रीय सशस्त्र बलों के जवानों व अधिकारियों को भी लाभान्वित करेगी।
इसके अलावा, मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम रक्षाकर्मियों और शहीद या मृत सैनिकों के आश्रितों को भी इस गाइडलाइन के तहत त्वरित न्याय प्राप्त होगा।
🔹 “न्याय में देरी, अन्याय के समान” – न्यायपालिका का संदेश
हाईकोर्ट की इस पहल को न्याय व्यवस्था में एक संवेदनशील और सुधारात्मक कदम माना जा रहा है। अदालत का स्पष्ट संदेश है कि देश की सुरक्षा में लगे जवानों और उनके परिवारों को न्याय पाने में कोई विलंब नहीं होना चाहिए।


