Saturday, July 27, 2024

Top 5 This Week

Related Posts

उत्तराखंड में हुए एक सीक्रेट मिशन का खतरा आज भी बरकरार

बात 1965 की है,  जब वियतनाम युद्ध तेज हो रहा था और चीन झिंजियांग प्रांत में ख़ुफ़िया परमाणु परिक्षण कर रहा था l अमेरिका की केन्द्रीय ख़ुफ़िया एजेंसी, सीआईए, चीनी परमाणु कार्यक्रम को लेकर चिंतित थी क्योंकि चीनी खतरे का मुकाबला करने के लिए संयुक्त राज्य अमेरिका को कोई खुफिया डेटा नहीं मिल रहा था। चीन की गतिविधियों पर नजर रखने के लिए अमेरिका ने भारत से मदद मांगी। ये भारत के हित में भी था क्योँ की तीन साल पहले ही चीन ने भारत को युद्ध में करारी शिकस्त दी थी l

चुनाव करना था एक ऐसी जगह का जहाँ से भारत के पड़ोस यानि चीन की हरकतों पर नज़र रखी जा सके और चीन को कानों कान इसकी खबर भी ना हो l CIA ने भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी के साथ मिलकर विश्व की 23वीं और भारत की दूसरी सबसे बड़ी चोटी नंदा देवी को इसके लिए चुना l और वहां एक रिमोट सेंसिंग स्टेशन स्थापित करना तय हुआ लेकिन सबसे बड़ा सवाल उठा की इस सेंसिंग स्टेशन को पॉवर सप्लाई कैसे मिलेगी l ठण्ड में रेगुलर बैटरी का काम करना असंभव था और नंदा देवी रेंज में पल पल बदलता मौसम कहीं से भी सोलर पॉवर के लिए उपयुक्त नहीं था l ऐसे में ये तय हुआ कि नंदा देवी की चोटी पर एक परमाणु संचालित रिमोट सेंसिंग स्टेशन स्थापित किया जायेगा l दोनों देशों ने भारत नंदा देवी प्लूटोनियम मिशन के लिए हाथ मिला लिया l

इस मिशन के तहत एक 8-10 फीट ऊंचा एंटीना, दो ट्रांसीवर सेट और प्लूटोनियम संचालित रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर और इसके सात प्लूटोनियम कैप्सूल स्थापित करने थे l इन सेंसर्स को लगाने से पहले इसका ट्रायल अमेरिका में अलास्‍का की माउंट किनले पर 23 जून 1965 को किया था। वहां मिली सफलता के बाद नंदा देवी पर इस मिशन को अंजाम देने की प्रक्रिया शुरू हुई।   अक्टूबर 1965 में, भारतीय खुफिया ब्यूरो के साथ CIA ने नंदा देवी पर चढ़ाई के साथ मिशन शुरू किया। तैयारी पूरी थी और मौसम भी काम को अंजाम देने के लिए अनुकूल था, लेकिन एक्सपीडिशन टीम  कैंप IV में जैसे ही पहुंची, एक भयानक बर्फ़ीला तूफ़ान सामने आ गया। परिस्थिति इतनी खराब हो गई थी कि टीम लीडर मनमोहन सिंह कोहली को वापस बेस कैंप पर लौटने का फैसला करना पड़ा। टीम ने प्लूटोनियम संचालित रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर को एक दरार के सहारे गुफा बना कर रख दिया और वापस बेस पर लौट आए l

 

इसके बाद ये तय किया गया कि बर्फ़बारी का मौसम खत्म होते ही एक बार फिर इस मिशन को अंजाम दिया जायेगा, मई 1966 में प्लूटोनियम संचालित रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर और उसके सात प्लूटोनियम कैप्सूलों को पुनर्प्राप्त करने के लिए एक इंडियन एक्सपीडिशन टीम  को कैंप IV में भेजा गया। लेकिन ये टीम प्लूटोनियम जनरेटर और उसके कैप्सूल के किसी भी संकेत को खोजने में विफल रहा।  फिर इसके बाद वहां छोडे गए उपकरणों को पुनर्प्राप्त करने के लिए संयुक्त राज्य ने अमेरिका के पर्वतारोहियों की एक टीम को भी इस काम के लिए भेजा l टीम के सदस्यों में से एक, डेव डिंगमैन ने वापिस लौट कर ये जानकारी दी कि उन्होंने नंदा देवी के क्षेत्र को न्यूट्रॉन डिटेक्टरस से स्कैन किया था लेकिन वहां पर प्लूटोनियम का कोई सबूत नहीं मिला। 1966 और 1967 में एक बार फिर नुक्लेअर डिवाइस के खोज के लिए टीम भेजी गई और आख़िरकार 1968 में सर्च ऑपरेशन बंद कर दिया गया। टीम ने निष्कर्ष निकाला कि प्लूटोनियम संचालित रेडियोआइसोटोप थर्मोइलेक्ट्रिक जेनरेटर और इसके सात प्लूटोनियम कैप्सूल भूस्खलन में नंदा देवी की पहाड़ियों में कहीं दफ़्न  हो गएl

इस अभियान के टीम लीडर मनमोहन सिंह कोहली ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए एक इंटरव्यू में इस बात की भी पुष्टि की है कि नंदा देवी पर खोए नुक्लेअर डिवाइस की उम्र 100 वर्ष थी, इसलिए अब भी उसका खतरा करीब 40 वर्षों तक और रहेगा। अगर डिवाइस नंदा देवी बेसिन से निकलने वाली ऋषि गंगा में मिल गया तो पानी के जहरीले होने का खतरा अभी 40 सालों तक बरकरार है l

 

Popular Articles