आतंकवाद से निपटने वाली संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की समितियों में इस वर्ष आधे समय बीतने के बाद भी कोई अध्यक्ष नहीं है।
पाकिस्तान इसमें अड़ंगा डाल रहा है, क्योंकि वह तीन समितियों में से एक या अधिक पर नियंत्रण चाहता है। परिषद के कई कार्य सर्वसम्मति से संचालित होते हैं, इसी का लाभ उठाकर वह समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति रोकने में सफल रहा है।
राजनयिक सूत्रों के अनुसार, मुख्य रूप से परिषद के पश्चिमी देशों ने पाकिस्तान को किसी भी पैनल का अध्यक्ष बनने का विरोध किया है। विरोध कर रहे देशों ने कहा है कि इस्लामाबाद के हितों में टकराव है क्योंकि वह लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकवादी संगठनों और उनके नेताओं को पनाह देता है और पड़ोसी अफगानिस्तान पर शासन कर रहे तालिबान के साथ उसके संबंध विवादास्पद हैं।
ग्रीस के स्थायी प्रतिनिधि इवेंजेलोस सेकेरिस ने माना कि समितियों के नेतृत्व पर सहमति बनाना संभव नहीं हो पाया है। समितियों के लिए अध्यक्षों की नियुक्ति न होने पर परिषद की अध्यक्षता करने वाला देश इसका अंतरिम प्रमुख होता है। यदि अध्यक्षों की नियुक्ति नहीं हुई तो पाकिस्तान जो अगले महीने परिषद की अध्यक्षता संभालेगा, जुलाई में स्वत: ही समितियों का अध्यक्ष बन जाएगा।
पाकिस्तान इस बात पर जोर दे रहा है कि उसे कम से कम 1988 तालिबान प्रतिबंध समिति की अध्यक्षता मिलनी चाहिए। पाकिस्तान का तालिबान के साथ विवादास्पद संबंध है। वह समिति की अध्यक्षता का उपयोग अफगानिस्तान पर प्रभाव डालने के लिए करना चाहता है।