वॉशिंगटन। वैश्विक रणनीतिक संतुलन को झकझोर देने वाला कदम उठाते हुए अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने घोषणा की है कि अमेरिका अब दो दशकों से अधिक समय बाद फिर से परमाणु परीक्षण शुरू करेगा। ट्रंप ने कहा कि यह निर्णय रूस और चीन की बढ़ती परमाणु गतिविधियों और हथियार आधुनिकीकरण कार्यक्रमों को देखते हुए लिया गया है।
व्हाइट हाउस में पत्रकारों से बातचीत के दौरान ट्रंप ने कहा, “अमेरिका अब किसी भी स्थिति में पीछे नहीं रहेगा। जब अन्य देश अपने परमाणु शस्त्रागार को तेज़ी से उन्नत कर रहे हैं, तो हमें भी अपनी तकनीक और क्षमता को परखना होगा।” उन्होंने दावा किया कि यह कदम राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक शक्ति संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
अमेरिका ने आखिरी बार 1992 में नेवादा टेस्ट साइट पर परमाणु परीक्षण किया था। इसके बाद से वह ‘कम्प्रिहेन्सिव न्यूक्लियर टेस्ट बैन ट्रीटी’ (CTBT) के सिद्धांतों का पालन करता रहा, भले ही उसने इस संधि की पुष्टि नहीं की थी। अब ट्रंप प्रशासन का यह फैसला न केवल अमेरिका की पुरानी नीति में बड़ा बदलाव माना जा रहा है, बल्कि इससे वैश्विक परमाणु निरस्त्रीकरण प्रयासों को भी झटका लग सकता है।
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा कि रूस और चीन लगातार नए परमाणु वारहेड्स, हाइपरसोनिक हथियार और लंबी दूरी की मिसाइलें विकसित कर रहे हैं। “जब वे खुलकर ऐसा कर रहे हैं, तो हमें सिर्फ बैठकर देखना नहीं चाहिए,” उन्होंने कहा।
अमेरिकी रक्षा विभाग के सूत्रों के अनुसार, प्रारंभिक परीक्षण “सब-क्रिटिकल” यानी सीमित पैमाने पर होंगे, जिनमें विस्फोटक क्षमता को वास्तविक विस्फोट के बिना परखा जाएगा। हालांकि, अंतरराष्ट्रीय समुदाय को आशंका है कि यह भविष्य में पूर्ण परमाणु परीक्षणों की दिशा में पहला कदम साबित हो सकता है।
रूस और चीन दोनों ने अमेरिका के इस निर्णय पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। मॉस्को ने इसे “खतरनाक और उकसाने वाला कदम” बताया, जबकि बीजिंग ने कहा कि यह “विश्व शांति और स्थिरता के खिलाफ कार्रवाई” है। दोनों देशों ने संयुक्त राष्ट्र के माध्यम से इस मुद्दे को उठाने की चेतावनी दी है।
विशेषज्ञों का मानना है कि अमेरिका का यह फैसला नई हथियारों की दौड़ (Arms Race) को जन्म दे सकता है। परमाणु विशेषज्ञों का कहना है कि इससे परमाणु परीक्षण प्रतिबंध संधि (CTBT) का भविष्य गंभीर खतरे में पड़ सकता है और अन्य देश भी इसी राह पर चल सकते हैं।
वहीं, ट्रंप प्रशासन का तर्क है कि नई भू-राजनीतिक परिस्थितियों में अमेरिका को अपनी रणनीतिक बढ़त बनाए रखने के लिए उन्नत तकनीकी परीक्षण जरूरी हैं। अमेरिकी कांग्रेस के कुछ सदस्यों ने इस निर्णय का समर्थन किया है, जबकि डेमोक्रेट नेताओं ने इसे “अंतरराष्ट्रीय शांति के खिलाफ खतरनाक प्रयोग” बताया है।
इस कदम से वैश्विक स्तर पर परमाणु हथियारों की नई प्रतिस्पर्धा शुरू होने की आशंका है, जिससे अमेरिका, रूस और चीन के बीच तनाव और गहराने की संभावना बन गई है।


