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अमेरिका-चीन ट्रेड वॉर से बढ़ सकते हैं ईवी और विंड टर्बाइन के दाम, भारत के सामने नई चुनौतियां और संभावनाएं

नई दिल्ली। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव का असर अब वैश्विक ग्रीन टेक्नोलॉजी बाजार पर भी दिखने लगा है। विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों देशों के बीच बढ़ते ट्रेड वॉर से इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) और विंड टर्बाइन जैसी स्वच्छ ऊर्जा उत्पादों की कीमतों में इजाफा हो सकता है। ऐसे में जहां भारत के लिए यह स्थिति नई चुनौतियां लेकर आ रही है, वहीं घरेलू उत्पादन को प्रोत्साहन देने के अवसर भी खोल रही है।
दरअसल, अमेरिका ने हाल ही में चीन से आयातित बैटरी, सोलर पैनल, विंड टर्बाइन और ईवी पार्ट्स पर नए टैरिफ लगाने की घोषणा की है। इसके जवाब में चीन ने भी अमेरिकी उत्पादों पर आयात शुल्क बढ़ाने की चेतावनी दी है। इन दोनों आर्थिक शक्तियों के बीच जारी यह रस्साकशी वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को प्रभावित कर सकती है।

भारत में ईवी और नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में उपयोग होने वाले कई महत्वपूर्ण पुर्जे — जैसे कि लिथियम-आयन बैटरी सेल, रोटर ब्लेड, और कंट्रोल सिस्टम — अभी भी चीन और अन्य एशियाई देशों से आयात किए जाते हैं। ऐसे में यदि कीमतों में बढ़ोतरी होती है, तो इसका सीधा असर भारत के ईवी निर्माताओं और पवन ऊर्जा परियोजनाओं की लागत पर पड़ेगा।
ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि यह परिस्थिति भारत के लिए एक “वेक-अप कॉल” की तरह है। भारत के पास स्थानीय निर्माण क्षमताओं को विकसित करने, सप्लाई चेन को विविध बनाने और ‘मेक इन इंडिया’ पहल को गति देने का सुनहरा अवसर है।
फेडरेशन ऑफ इंडियन चेंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (FICCI) के अनुसार, अगर भारत अगले कुछ वर्षों में बैटरी निर्माण और ग्रीन टेक्नोलॉजी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनता है, तो न केवल घरेलू जरूरतें पूरी होंगी बल्कि निर्यात की संभावनाएं भी बढ़ेंगी।
नीति आयोग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि सरकार पहले से ही राष्ट्रीय ऊर्जा भंडारण मिशन (National Energy Storage Mission) और प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI) योजना के तहत ईवी बैटरी और नवीकरणीय ऊर्जा उपकरणों के स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देने की दिशा में काम कर रही है।
हालांकि, अल्पकालिक दृष्टि से देखें तो लागत बढ़ने के कारण ईवी की कीमतों में मामूली बढ़ोतरी संभव है। वहीं, पवन ऊर्जा परियोजनाओं के लिए कच्चे माल और मशीनरी की उपलब्धता प्रभावित हो सकती है।
आर्थिक विश्लेषकों का मानना है कि यह वैश्विक स्थिति भारत के लिए दोहरी स्थिति लेकर आई है — एक ओर प्रतिस्पर्धा बढ़ेगी, दूसरी ओर घरेलू उद्योगों को मजबूत बनाने का मौका मिलेगा।
यदि भारत इस अवसर का रणनीतिक उपयोग कर लेता है, तो आने वाले वर्षों में वह ग्रीन एनर्जी मैन्युफैक्चरिंग हब के रूप में उभर सकता है।

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