Monday, August 11, 2025

Top 5 This Week

Related Posts

EC vs राहुल गांधी: ‘सबूत दीजिए’, मतदाता सूची में गड़बड़ी के आरोपों पर चुनाव आयोग ने मांगा लिखित प्रमाण

लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी द्वारा मतदाता सूचियों में भारी गड़बड़ी के आरोप लगाने के बाद चुनाव आयोग ने सख्त रुख अपनाते हुए उनसे लिखित प्रमाण मांगा है। कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने राहुल गांधी को पत्र भेजकर कहा है कि यदि वे अपने दावों को सही मानते हैं तो नियमों के तहत शपथपत्र देकर उन मतदाताओं के नाम और विवरण उपलब्ध कराएं, जिनके बारे में उन्होंने कहा था कि वे या तो अयोग्य होते हुए भी सूची में शामिल हैं या योग्य होते हुए भी बाहर कर दिए गए हैं।
‘वोट की चोरी’ का आरोप
राहुल गांधी ने हाल ही में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया था कि महाराष्ट्र, कर्नाटक और अन्य राज्यों में मतदाता सूचियों के साथ छेड़छाड़ की गई है। उन्होंने कहा कि लाखों फर्जी नाम जोड़े गए हैं और वहीं लाखों असली मतदाताओं के नाम हटा दिए गए हैं। उन्होंने इसे ‘वोट की चोरी’ करार दिया और चुनाव आयोग की निष्पक्षता पर सवाल उठाया।
चुनाव आयोग की दो-टूक – सबूत दीजिए

कर्नाटक के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने पत्र में कहा है कि निर्वाचन नियम 20(3)(b) के तहत किसी भी शिकायतकर्ता को शपथपत्र देकर सटीक विवरण देना होता है, ताकि जांच शुरू की जा सके। पत्र में यह भी उल्लेख किया गया है कि अगर शिकायत सही पाई गई तो आयोग उचित कानूनी कार्रवाई करने के लिए तैयार है।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
राहुल गांधी के आरोपों ने देश की सियासत को गरमा दिया है। कांग्रेस ने इसे लोकतंत्र और निष्पक्ष चुनाव प्रणाली पर सीधा हमला बताया है। पार्टी नेताओं का कहना है कि यह समस्या केवल कुछ राज्यों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह पूरे देश में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं को प्रभावित करने की एक बड़ी साजिश है।

वहीं भाजपा ने पलटवार करते हुए कहा कि कांग्रेस हार की आशंका से घबराई हुई है और अब वह चुनाव आयोग की साख पर सवाल उठाकर चुनाव पूर्व माहौल को बिगाड़ने का प्रयास कर रही है।
अब सबकी निगाह राहुल की प्रतिक्रिया पर
चुनाव आयोग ने स्थिति स्पष्ट कर दी है – यदि प्रमाण दिए गए तो कार्रवाई होगी, वरना आरोप महज राजनीतिक बयानबाजी माने जाएंगे। अब देखना होगा कि क्या राहुल गांधी अपने दावों के समर्थन में शपथपत्र के साथ सूची पेश करते हैं या मामला राजनीतिक बयानबाज़ी तक ही सीमित रह जाता है।
यह मामला सिर्फ मतदाता सूची की वैधता का नहीं, बल्कि चुनाव आयोग की निष्पक्षता और सार्वजनिक विश्वास की अग्नि परीक्षा बनता जा रहा है।

Popular Articles